UPTET-यूपी में सहायक अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक
यूपी में सहायक अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया पर रोक
उत्तर प्रदेश में 72,825 सहायक
अध्यापकों के चयनऔर
नियुक्ति की प्रक्रिया एक बार फिर
लटक गई है। हाईकोर्ट ने कई
अभ्यर्थियों की विशेष अपीलपर अगले आदेश
तक के लिए काउंसिलिंग और चयन
प्रक्रिया निलंबित कर दी है।
सोमवार को कोर्ट ने प्रदेश सरकार से
जवाब मांगा और सुनवाई 11
फरवरी नियत की है। नवीन कुमार
श्रीवास्तव और अन्य द्वारा दाखिल
विशेष अपील पर न्यायमूर्ति सुशील
हरकौली और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र
की खंडपीठ ने यह आदेश दिया।
विशेष अपील में एकल न्यायपीठ के 16
जनवरी के आदेश को चुनौती देते हुए
कहा गया कि न्यायपीठ ने प्रदेश सरकार
द्वारा टीईटी को मात्र अर्हतामानने के
फैसले को स्वीकार कर लिया है।
चूंकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम
2009 एक केंद्रीय अधिनियम है और उसके
तहत प्राप्त
अधिकारों द्वारा एनसीटीई (नेशनल
काउंसिल फार टीचर्स एडूकेशन) ने 23
अगस्त 2010 और 29 जुलाई 2011
को अधिसूचना जारी कर सहायक
अध्यापकों की न्यूनतम
योग्यता निर्धारित की है। इसलिए
बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 पर यह
बाध्यकारी है।
इस अधिसूचना के विपरीत शिक्षक
नियमावली में कोई संशोधन
नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार
द्वारा पूर्व का विज्ञापन रद कर देने से
पूरी चयन प्रक्रिया बदल गई है।
टीईटी के प्राप्ताकों को अब मानक के
बजाय मात्र अर्हता माना जा रहा है।
इस नई परिस्थिति में जो लोग 30 नवंबर
2011 के विज्ञापन में आवेदन
की अर्हता नहीं रखते थे, वह भी अब
पात्र हो गए हैं। इसकी वजह से
प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।
खंडपीठ ने प्रदेश सरकार से
जानना चाहा है कि क्या एकल न्यायपीठ
ने टीईटी परीक्षा में हुई धांधली और
इसमें लिप्त लोगों को अलग करके शेष
लोगों का चयन टीईटी केप्राप्तांक पर
चयन करने के लिए कहा था। खंडपीठ
का मत था कि पिछली सरकार के जाने के
बाद नई सरकार ने पूरी चयन
प्रक्रिया बदल दी। अब ऐसा भी संभव है
कि कोई दूसरी सरकार बने और वह इस
सरकार की चयन प्रक्रिया को दोषपूर्ण
बताते हुए बदल दे।
news source -jagran
उत्तर प्रदेश में 72,825 सहायक
अध्यापकों के चयनऔर
नियुक्ति की प्रक्रिया एक बार फिर
लटक गई है। हाईकोर्ट ने कई
अभ्यर्थियों की विशेष अपीलपर अगले आदेश
तक के लिए काउंसिलिंग और चयन
प्रक्रिया निलंबित कर दी है।
सोमवार को कोर्ट ने प्रदेश सरकार से
जवाब मांगा और सुनवाई 11
फरवरी नियत की है। नवीन कुमार
श्रीवास्तव और अन्य द्वारा दाखिल
विशेष अपील पर न्यायमूर्ति सुशील
हरकौली और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र
की खंडपीठ ने यह आदेश दिया।
विशेष अपील में एकल न्यायपीठ के 16
जनवरी के आदेश को चुनौती देते हुए
कहा गया कि न्यायपीठ ने प्रदेश सरकार
द्वारा टीईटी को मात्र अर्हतामानने के
फैसले को स्वीकार कर लिया है।
चूंकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम
2009 एक केंद्रीय अधिनियम है और उसके
तहत प्राप्त
अधिकारों द्वारा एनसीटीई (नेशनल
काउंसिल फार टीचर्स एडूकेशन) ने 23
अगस्त 2010 और 29 जुलाई 2011
को अधिसूचना जारी कर सहायक
अध्यापकों की न्यूनतम
योग्यता निर्धारित की है। इसलिए
बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 पर यह
बाध्यकारी है।
इस अधिसूचना के विपरीत शिक्षक
नियमावली में कोई संशोधन
नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार
द्वारा पूर्व का विज्ञापन रद कर देने से
पूरी चयन प्रक्रिया बदल गई है।
टीईटी के प्राप्ताकों को अब मानक के
बजाय मात्र अर्हता माना जा रहा है।
इस नई परिस्थिति में जो लोग 30 नवंबर
2011 के विज्ञापन में आवेदन
की अर्हता नहीं रखते थे, वह भी अब
पात्र हो गए हैं। इसकी वजह से
प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।
खंडपीठ ने प्रदेश सरकार से
जानना चाहा है कि क्या एकल न्यायपीठ
ने टीईटी परीक्षा में हुई धांधली और
इसमें लिप्त लोगों को अलग करके शेष
लोगों का चयन टीईटी केप्राप्तांक पर
चयन करने के लिए कहा था। खंडपीठ
का मत था कि पिछली सरकार के जाने के
बाद नई सरकार ने पूरी चयन
प्रक्रिया बदल दी। अब ऐसा भी संभव है
कि कोई दूसरी सरकार बने और वह इस
सरकार की चयन प्रक्रिया को दोषपूर्ण
बताते हुए बदल दे।
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