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Friday, April 13, 2012

अब सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत निशुल्क सीटें कमजोर वर्ग के बच्चों को मिल सकेंगी।

गरीब तबके के बच्चों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उन निजी स्कूलों का दरवाजा खोल दिया जिनमें शिक्षा हासिल करना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं था।

शिक्षा के अधिकार कानून के प्रावधानों को हरी झंडी देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को 2009 में बने इस कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा । अब सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत निशुल्क सीटें कमजोर वर्ग के बच्चों को मिल सकेंगी।


शीर्ष अदालत का यह फैसला भविष्य में मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि इस कानून के वैध करार दिए जाने के बाद सरकार जनहित को ध्यान में रखकर उच्च शिक्षा में भी यह प्रयोग कर सकती है। चीफ जस्टिस एसएच कपाडिया की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ से आए बहुमत के फैसले में कहा गया कि कानून सरकारी और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों पर समान रूप से लागू होता है। सिर्फ गैर सहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक स्कूल इसके दायरे से बाहर रहेंगे।

जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने चीफ जस्टिस कपाडिया की राय से सहमति जताते हुए कहा कि अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यकों को अपना शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उसका प्रबंधन चलाने का अधिकार प्राप्त है जबकि अनुच्छेद 19 में कुछ सीमाएं तय की गई हैं। ऐसे में सरकार से अनुदान न लेने वाले अल्पसंख्यक स्कूलों को शिक्षा के अधिकार के प्रावधानों से बाहर रखना ही उचित है।

इसके अलावा सरकार या सरकारी प्राधिकरण से चलाए जाने वाले स्कूलों, सहायता प्राप्त निजी व अल्पसंख्यक स्कूलों और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में इस कानून के तहत गरीब तबके के बच्चों को संस्थान में निशुल्क 25 प्रतिशत प्रवेश देना अनिवार्य है। वहीं, पीठ में शामिल जस्टिस केएस राधाकृष्णन ने दो न्यायाधीशों की राय से असहमति जताते हुए कहा कि यह कानून उन गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों और अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होगा जिन्हें सरकार से कोई सहायता या अनुदान हासिल नहीं होता। सरकार से अनुदान लेने वाले स्कूलों पर यह लागू होगा। news- amar ujala