लखनऊ, जागरण ब्यूरो : बच्चों को नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत गरीब नौनिहालों को 25 फीसदी सीटों पर दाखिला देने के प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही मुहर लगा दी हो लेकिन सूबे में इस पर अमल आसान नहीं लगता। निजी स्कूलों की 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों को प्रवेश देने के मामले में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अपने-अपने तर्क हैं। अधिनियम की धारा 12(1)(सी) में स्पष्ट उल्लेख है कि निजी स्कूलों को कक्षा एक की न्यूनतम 25 प्रतिशत सीटों पर पड़ोस में रहने वाले समाज के दुर्बल व वंचित वर्ग के बच्चों को प्रवेश देना होगा और उन्हें कक्षा आठ तक नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा देनी होगी। अधिनियम की धारा 3(1) में कहा गया है कि छह से 14 वर्ष तक के हर बच्चे को पड़ोस के विद्यालय में नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा हासिल करने का हक होगा जब तक कि वह प्रारंभिक शिक्षा पूरी न कर ले। गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने के सवाल पर बेसिक शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि अधिनियम के तहत छह से 14 वर्ष तक के बच्चे को पड़ोस के विद्यालय में दाखिला देने की बाध्यता है।
अधिनियम के तहत राज्य सरकार की गत वर्ष जारी की गई नियमावली में स्कूलों की स्थापना के संदर्भ में पड़ोस का क्षेत्र या सीमा निर्धारित की गई है। नियमावली की धारा 4(1)(क) के मुताबिक न्यूनतम 300 की आबादी वाली बस्ती में प्राथमिक स्कूल स्थापित किया जाएगा यदि उसके एक किमी के दायरे में कोई दूसरा विद्यालय नहीं है। वहीं 800 की न्यूनतम आबादी वाली बस्ती में उच्च प्राथमिक स्कूल स्थापित किया जाएगा यदि उसके तीन किमी के दायरे में कोई अन्य विद्यालय नहीं है। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि यदि पड़ोस में बेसिक शिक्षा परिषद संचालित स्कूल है तो बच्चा उसमें दाखिला ले सकता है। पड़ोस में परिषदीय स्कूल न होने की स्थिति में ही बच्चे को निजी स्कूल में प्रवेश दिलाने की व्यवस्था की गई है। मिसाल के तौर पर वह कहते हैं कि यह नहीं हो सकता कि कोई गरीब बच्चा राजधानी के चौक इलाके में रहता हो और दाखिला गोमतीनगर के किसी निजी स्कूल में कराना चाहे। इस तर्क-वितर्क के अलावा नौनिहालों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने की राह में एक और मुश्किल है। निजी स्कूलों में प्रवेश के संदर्भ में अब तक गरीबी को परिभाषित नहीं किया जा सका है।
अधिनियम के तहत राज्य सरकार की गत वर्ष जारी की गई नियमावली में स्कूलों की स्थापना के संदर्भ में पड़ोस का क्षेत्र या सीमा निर्धारित की गई है। नियमावली की धारा 4(1)(क) के मुताबिक न्यूनतम 300 की आबादी वाली बस्ती में प्राथमिक स्कूल स्थापित किया जाएगा यदि उसके एक किमी के दायरे में कोई दूसरा विद्यालय नहीं है। वहीं 800 की न्यूनतम आबादी वाली बस्ती में उच्च प्राथमिक स्कूल स्थापित किया जाएगा यदि उसके तीन किमी के दायरे में कोई अन्य विद्यालय नहीं है। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि यदि पड़ोस में बेसिक शिक्षा परिषद संचालित स्कूल है तो बच्चा उसमें दाखिला ले सकता है। पड़ोस में परिषदीय स्कूल न होने की स्थिति में ही बच्चे को निजी स्कूल में प्रवेश दिलाने की व्यवस्था की गई है। मिसाल के तौर पर वह कहते हैं कि यह नहीं हो सकता कि कोई गरीब बच्चा राजधानी के चौक इलाके में रहता हो और दाखिला गोमतीनगर के किसी निजी स्कूल में कराना चाहे। इस तर्क-वितर्क के अलावा नौनिहालों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने की राह में एक और मुश्किल है। निजी स्कूलों में प्रवेश के संदर्भ में अब तक गरीबी को परिभाषित नहीं किया जा सका है।
dainik jagran 16/4/12