Pages

Labels

Saturday, April 14, 2012

शिक्षा कानून लागू हो गया है लेकिन अब भी कई अनसुलझे सवाल हैं।

कई अनसुलझे सवाल शिक्षा कानून लागू हो गया है लेकिन अब भी कई अनसुलझे सवाल हैं। कई ऐसे पेंच हैं जिनका जबाव सब ढूंढ़ ही रहे हैं। ल्ल प्रवेश में क्या पारदर्शिता हो पाएगी। ल्ल जिन बच्चों का विद्यालय प्रवेश लेंगे वे वास्तव में गरीब हैं या नहीं, यह कौन तय करेगा। ल्ल कम पढ़े लिखे बच्चे कैसे भागमभाग पढ़ाई को पकड़ सकेंगे। ल्ल बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए क्या प्रयास किए जाएंगे। ल्ल यूनिफार्म, किताबें, कापी और विद्यालयों में फीस के अलावा साल भर होने के खर्च को कौन वहन करेगा
। क्या है गरीब की परिभाषा? शिक्षा कानून के अनुसार प्राइवेट स्कूलों में भी 25 फीसद बच्चे गरीब घरों के पढ़ सकेंगे। यह गरीब कौन होंगे? गरीब की परिभाषा और मानक क्या होंगे, बड़ा सवाल है। स्कूल भी यह तय नहीं कर पा रहे कि वास्तव में गरीब किसे माना जाएगा। इस सवाल का जवाब जल्द नहीं तलाशा गया तो गरीब बनने की होड़ लग जाएगी। 4 हजार की कमाई में कैसे पढ़ाएंगे कबाड़ का काम करने वाले उल हसन और जलील अहमद कहते हैं कि महीने में 4-5 हजार रुपये बड़ी मुश्किल से कमा पाते हैं। बड़े स्कूलों में फीस माफ करने के बाद भी मेरी महीन में कमाई का दो-तीन गुना तक का खर्च है। कापी, किताबें, ड्रेस और बहुत कुछ। कहां से कर पाएंगे इसकी पूर्ति। हां, सरकार ने सका कोई रास्ता निकाला तो निश्चित तौर पर बच्चों का भला हो सकेगा। उच्चतम न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन इसे स्वीकार करना इतना सहज नहीं होगा। बदले माहौल का प्रभाव व्यक्तित्व पर पड़ना तय है। आशंका इस बात की भी है कि गरीब बच्चे बड़े स्कूलों में पहुंच कर असहज महसूस करें और उनका मन पढ़ाई से ही उचट जाए। डॉ. पीके खत्री, विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान, नेशनल पीजी कॉलेज अभाव में जीवन गुजार रहे बच्चों को यदि माहौल मिले तो वह भी अच्छा कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि गरीब बच्चों के पास टैलेंट की कमी है। नए माहौल में आने वाले बच्चे भी धीरे-धीरे सामंजस्य बना लेंगे। वह कहते हैं कि इसमें शिक्षकों व प्राचार्यों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी। डॉ. पीके दलाल, मनोरोग विशेषज्ञ चिकित्सा विवि अभिभावकों को है स्वीकार कविता पांडेय कहती हैं कि हमें अपने बच्चों के साथ गरीब बच्चों के शिक्षा लेने पर कोई एतराज नहीं होगा। बिहार में रिक्शेवाले के लड़के ने आइएएस की परीक्षा पास की। दरअसल इसके लिए तैयार तो स्कूल को होना पड़ेगा अमिता बताती हैं कि उनकी बेटी नर्सरी में पढ़ती है। क्लास में तमाम बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे में यह पहचान करना कि गरीब घर का बच्चा कौन है मुश्किल है। ऐसे में मैं नहीं समझती कि कोई प्रभाव पड़ेगा। सीमा पांडेय कहती हैं कि गरीब बच्चा स्कूल आएगा तो वह भी हमारे बच्चों के लेवल पर आ जाएगा। माहौल मिलेगा तो वह भी अन्य बच्चों के साथ कदम से कदम मिलाने लगेंगे। कंचन पांडेय कहती हैं कि शिक्षा का अधिकार सबको है। बच्चों को माहौल मिलेगा तो वह ढल जाएंगे। संध्या पांडेय के अनुसार शिक्षा सभी बच्चों का हक है। जहां तक एडजस्टमेंट की बात है बच्चों को करना ही चाहिए। रितु माहेश्वरी कहती हैं कि शिक्षा के द्वारा ही समाज तरक्की कर सकता है। अच्छी शिक्षा के जरिए ही अच्छे नागरिक तैयार होंगे। इसलिए गरीब परिवारों के बच्चों को पीछे छोड़ कर समाज आगे नहीं बढ़ सकता। पीके श्रीवास्तव, अध्यक्ष अभिभावक कल्याण संघ निर्णय अच्छा है लेकिन परेशानियां भी बहुत हैं। बच्चों को तैयार करने के लिए समय देना चाहिए। प्रवेश में पारदर्शिता लानी होगी ताकि लाभ सही लोगों को मिले। पहले गरीब की परिभाषा तय करनी होगी? अनिल अग्रवाल, निदेशक सेंट जोसेफ कॉलेज गरीब बच्चों के लिए पहले से ही मुफ्त कक्षाएं चल रही थीं। समाज के हर तबके को अच्छी शिक्षा पाने का अधिकार है। इस कानून से क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। 25 फीसद ही नहीं, अच्छे बच्चे मिले तो 35 फीसद भी पढ़ाएंगे। राजीव तुली, निदेशक माडर्न एकेडमी केंद्र सरकार द्वारा इस बाबत निर्देश अभी जारी नहीं किए गए हैं। केंद्र और राज्य सरकार के आपसी समन्वय से जैसे दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे उसी आधार पर स्कूल में इसे लागू किया जाएगा। फैसला स्वागत योग्य है। जगदीश गांधी, फाउंडर सिटी मांटेसरी स्कूल शिक्षा कानून को सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य बनाकर गरीब बच्चों का भला किया है। स्कूल इस संदर्भ में स्वयं निर्णय लें। शिक्षा विभाग इसे प्रभावी ढंग से लागू कराने का हर संभव प्रयास करेगा। वीपी सिंह जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जिन स्कूलों में प्रवेश चल रहे हैं, उन्हें इसी सत्र से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना होगा। यह कदम स्वागत योग्य है। यदि किसी अभिभावक को शिकायत होती है तो वह कार्यालय में संपर्क कर सकता है। उमेश त्रिपाठी जिला विद्यालय निरीक्षक शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है कि शिक्षा का कानून विद्यालयों में प्रभावी ढंग से लागू कराएं। यह समाज के हर वर्ग का अधिकार है। जरूरत पड़ी तो अधिकार दिलाने के लिए अभिभावक संघ आंदोलन भी करेगा। स्कूलों का अडि़यल रुख समय : 1:15 मिनट स्थान : लखनऊ पब्लिक स्कूल, आशियाना कॉलोनी रिसेप्शन पर मिश्रा जी (सहयोगी इसी नाम से बुला रहे थे) थे। संवादाता ने कहा कि शिक्षा के अधिकार के तहत पहली कक्षा में बच्चे का दाखिला कराना है। उत्तर मिला पहले अधिनियम पढ़ के आओ। मुफ्त में कोई चीज थोड़ी मिल जाती है। बताया कि अखबार में पढ़ा था। कानून है। जवाब मिला कि मीडिया से पता चला। हमारे पास जब कोई निर्देश आएगा तो देखा जाएगा। फिलहाल दाखिला नहीं मिलेगा..। प्रधानाचार्या सुमन वर्मा कहती हैं कि नियम के बारे में आज ही जानकारी हुई है। मैनेजमेंट से बात करनी होगी। सोमवार को बैठक होगी, उसी में निर्णय लिया जाएगा। समय : 1:45 मिनट स्थान : सिटी मांटेसरी स्कूल, कानपुर रोड रिसेप्शन पर कुलश्रेष्ठ बैठे थे। संवाददाता ने कहा बच्चे का दाखिला कराना है। कहा गया 200 रुपये का एडमिशन फार्म है। संवाददाता ने कहा, मैं बीपीएल कार्ड धारक हूं। शिक्षा के अधिकार के तहत तो बच्चे का दाखिला मुफ्त में होना चाहिए। उत्तर मिला कैसा अधिकार? ऐसा कोई कानून नहीं है। यह कोई दुकान नहीं, जहां छूट मिलेगी। समय : 2:20 बजे स्थान : न्यू पब्लिक इंटर कॉलेज, कृष्णा नगर उत्तर मिला कि ऐसा कोई नियम अभी लागू नहीं है। फार्म लो पैसे जमा करो दाखिला मिल जाएगा। प्रधानाचार्या ममता श्रीवास्तव कहती हैं कि शहर से बाहर हूं, लौटने के बाद ही इस पर बात होगी। समय : 3:00 बजे स्थान : नवयुग रेडियंस सीनियर सेकेंडरी स्कूल, राजेंद्र नगर वाइस प्रिंसिपल डॉ. रीता शर्मा का कहना है कि निर्देश आने के बाद विचार करेंगे। जानकारी का अभाव सेंट टेरेसा कॉलेज, सेक्टर एल एलडीए कॉलोनी और स्टैला मरीज कॉलेज में भी गरीब तबके के कुछ लोग बच्चे का दाखिला कराने के लिए पहुंचे। सेंट टेरेसा कॉलेज की प्रधानाचार्या गितिका कपूर ने बताया कि कुछ लोग आए थे, लेकिन हमारा स्कूल अल्पसंख्यक अनएडेड है। दैनिक जागरण टीम शहर की एक मलिन बस्ती में पहुंची और जब बच्चों को बताया कि वह भी बड़े स्कूल में मुफ्त में पढ़ सकते हैं तो खिल उठे उनके चेहरे जागरणमु नन्हीं आंखों में सजे बड़े सपने निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम प्रभावी होने से गरीबों के घर दीवाली आ गई है। खुशी का माहौल है। अभिभावकों के चेहरों पर उम्मीद की आहट नजर आने लगी है। बच्चे भी खुश हैं। बड़े स्कूल में पढ़ने का सपना देख रहे हैं। शिक्षा विभाग से प्रभावी ढंग से लागू होने के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रहा है लेकिन स्कूलों का नजरिया अब भी साफ नहीं हुआ है। dainik jagran 14/4/12