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Saturday, April 21, 2012

कहीं खुशी कहीं गम

कहीं खुशी कहीं गम
इलाहाबाद : शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की मंशा के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताकारी परीक्षा का दर्जा देने के निर्णय की संभावना से प्रतियोगी छात्रों के बीच कहीं खुशी तो कहीं गम की स्थिति है। मालूम हो कि अब अभ्यर्थियों के हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और स्नातक स्तर पर प्राप्त किये गए अंकों के प्रतिशत के आधार पर नियुक्ति किए जाने की संभावना है। इसके लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया जा सकता है। छात्र ज्ञानेश कहते हैं कि यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में नकल हमेशा बड़ी समस्या रही है। ऐसे में कुछ मुख्यमंत्रियों के समय में रिजल्ट जहां गिरावट प्रदर्शित करता है वहीं कुछ विशेष वर्षो में इसमें खासी वृद्धि हुई। इसलिए इसे आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। वहीं शिशिर, सुनील आदि भी ऐसे ही विचार रखते हैं। वहीं दूसरी ओर एक खेमा ऐसा भी है जो इस निर्णय से खुश है। छात्र राजेश कहते हैं कि ज्यादातर राज्यों ने इसे अर्हताकारी परीक्षा ही माना है ऐसे में इसकी मेरिट को चयन का आधार बनाना उचित नहीं है। वह 13 नवंबर को हुई टीईटी में गड़बडि़यों का जिक्र करना भी नहीं भूलते। सदानंद मिश्र इसका विरोध करते हुए कहते हैं कि सही जांच से गड़बडि़यां ठीक भी की जा सकती हैं।
news-dainik jagran 21/4/12