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Monday, April 2, 2012

शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को निरस्त करने के लिए बेसिक शिक्षा निदेशालय ने शासन को प्रस्ताव भेज दिया।



भर्ती प्रक्रिया पर संकट जैसी आशंका थी वही हुआ और उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों में 72000 से अधिक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को निरस्त करने के लिए बेसिक शिक्षा निदेशालय ने शासन को प्रस्ताव भेज दिया। देखना यह है कि राज्य सरकार इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय लेती है, लेकिन यह आवश्यक है कि इतने बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति के मामले में जो भी निर्णय लिया जाए वह शीघ्र लिया जाए


। यद्यपि भर्ती प्रक्रिया को निरस्त करने का प्रस्ताव इस आधार पर किया गया है कि नियुक्ति के लिए अनिवार्य की गई शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी टीईटी अर्हताकारी परीक्षा होनी चाहिए, न कि उसकी मेरिट को चयन का आधार बनाया जाना चाहिए, लेकिन इस परीक्षा में जैसी धांधली का मामला सामने आया और उच्च स्तर के अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए उससे इस परीक्षा की शुचिता-पवित्रता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। टीईटी में पैसे के बदले अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण कराने के मामले में माध्यमिक शिक्षा परिषद के तत्कालीन सभापति की गिरफ्तारी के बाद इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि इस परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। स्पष्ट है कि टीईटी को रद न करने के बारे में तभी कोई निर्णय लिया जा सकता है जब ऐसी कोई प्रभावी व्यवस्था कर ली जाए जिससे जो लोग अनुचित तरीके से लाभान्वित हुए हैं उन्हें चयन की प्रक्रिया से बाहर किया जा सके और अगर राज्य सरकार को ऐसी किसी व्यवस्था की संभावना नजर नहीं आती तो फिर उसके पास परीक्षा रद करने का कठोर फैसला लेने और इसे नए सिरे से आयोजित करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं। यदि शिक्षक पात्रता परीक्षा नए सिरे से आयोजित करने का निर्णय ले लिया जाता है तो केवल इतना ही पर्याप्त नहीं होगा। राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह परीक्षा वास्तव में नीर-क्षीर ढंग से आयोजित हो और उस पर किसी तरह से उंगली न उठने पाए। यह एक ऐसा मामला है जिसमें और अधिक देरी का कोई औचित्य नहीं। यह किसी से छिपा नहीं कि उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की दुर्दशा का एक प्रमुख कारण शिक्षकों का अभाव भी है। इसलिए यह आवश्यक है कि शिक्षक भर्ती प्रक्रिया का मामला ठंडे बस्ते में न जाने पाए। dainik jagran 1/4/12 lucknow sanskaran