व्यापार घाटा खतरनाक स्तर पर
नई दिल्ली निर्यात वृद्धि दर में लगातार गिरावट की वजह से देश का व्यापार घाटा बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। निर्यात घट रहा है, जबकि आयात की रफ्तार ज्यों की त्यों बनी हुई है। फरवरी, 2012 में निर्यात में 4.2 फीसद की वृद्धि दर दर्ज की गई थी, वहीं आयात में 20 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है
। माना जा रहा है कि विकसित देशों में जिस तरह से संरक्षणवाद बढ़ रहा है, उसे देखते हुए भारत का निर्यात प्रदर्शन और खराब हो सकता है। वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा अगले कुछ दिनों के भीतर ही वार्षिक आयात-निर्यात नीति पेश करने वाले हैं। पिछले छह महीने से निर्यात में आ रही लगातार गिरावट को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के दौरान 300 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य हासिल करना नामुमकिन हो गया है। अप्रैल, 2011 से फरवरी, 2012 के दरम्यान 267.4 अरब डॉलर का निर्यात हुआ है। शुरुआती चार-पांच महीनों के दौरान निर्यात में जबरदस्त वृद्धि की वजह से इन 11 महीनों में निर्यात की वृद्धि दर तो 21.4 फीसदी होती है, लेकिन इससे सरकार के समक्ष चुनौतियां खत्म नहीं होती। माना जा रहा है कि पूरे वर्ष के दौरान निर्यात का आंकड़ा 290 अरब डॉलर का रहेगा, देखना होगा कि वाणिज्य मंत्री इस बार क्या रणनीति लेकर आते हैं। सरकार के लिए असली मुसीबत व्यापार घाटे का लगातार बढ़ना है। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर का कहना है कि व्यापार घाटा की स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है। अक्टूबर, 2011 के बाद से ही निर्यात कम हो रहा है, जबकि आयात की रफ्तार बनी हुई है। इन 11 महीनों में आयात की रफ्तार में 29 फीसदी से भी ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है। व्यापार घाटे का अंतर बढ़कर 166.7 अरब डॉलर हो गया है। निर्यातकों के शीर्ष संगठन फियो के अध्यक्ष एम रफीक अहमद का मानना है कि ग्लोबल मंदी की वजह से विकसित देश अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए बाहरी आयात को कम करेंगे। इससे भारत के लिए आने वाले महीनों में निर्यात बढ़ाना और मुश्किल होगा। अगले छह महीने तक निर्यात में दिक्कतें आएंगी। विदेशी मुद्रा कर्ज पर राहत अवधि बढ़ी हालात को देखते हुए रिजर्व बैंक ने निर्यात के लिए विदेशी मुद्रा में लिए जाने वाले कर्ज पर देय ब्याज की उच्चतम सीमा संबंधी नियमों में राहत की अवधि भी बढ़ा दी है। मौजूदा नियम के मुताबिक बैंक विदेशी मुद्रा में निर्यात हेतु कर्ज की राशि पर लंदन आधारित इंटरबैंक दर (लाइबॉर) के मुकाबले 3.50 फीसदी ज्यादा तक ब्याज ले सकते हैं। निर्यातकों के लिए बेहद आसान इस सुविधा की अवधि 31 मार्च, 2012 तक थी। इसे बढ़ाकर 30 सितंबर, 2012 तक कर दिया गया है। dainik jagran 3/4/12
नई दिल्ली निर्यात वृद्धि दर में लगातार गिरावट की वजह से देश का व्यापार घाटा बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। निर्यात घट रहा है, जबकि आयात की रफ्तार ज्यों की त्यों बनी हुई है। फरवरी, 2012 में निर्यात में 4.2 फीसद की वृद्धि दर दर्ज की गई थी, वहीं आयात में 20 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है
। माना जा रहा है कि विकसित देशों में जिस तरह से संरक्षणवाद बढ़ रहा है, उसे देखते हुए भारत का निर्यात प्रदर्शन और खराब हो सकता है। वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा अगले कुछ दिनों के भीतर ही वार्षिक आयात-निर्यात नीति पेश करने वाले हैं। पिछले छह महीने से निर्यात में आ रही लगातार गिरावट को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के दौरान 300 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य हासिल करना नामुमकिन हो गया है। अप्रैल, 2011 से फरवरी, 2012 के दरम्यान 267.4 अरब डॉलर का निर्यात हुआ है। शुरुआती चार-पांच महीनों के दौरान निर्यात में जबरदस्त वृद्धि की वजह से इन 11 महीनों में निर्यात की वृद्धि दर तो 21.4 फीसदी होती है, लेकिन इससे सरकार के समक्ष चुनौतियां खत्म नहीं होती। माना जा रहा है कि पूरे वर्ष के दौरान निर्यात का आंकड़ा 290 अरब डॉलर का रहेगा, देखना होगा कि वाणिज्य मंत्री इस बार क्या रणनीति लेकर आते हैं। सरकार के लिए असली मुसीबत व्यापार घाटे का लगातार बढ़ना है। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर का कहना है कि व्यापार घाटा की स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है। अक्टूबर, 2011 के बाद से ही निर्यात कम हो रहा है, जबकि आयात की रफ्तार बनी हुई है। इन 11 महीनों में आयात की रफ्तार में 29 फीसदी से भी ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है। व्यापार घाटे का अंतर बढ़कर 166.7 अरब डॉलर हो गया है। निर्यातकों के शीर्ष संगठन फियो के अध्यक्ष एम रफीक अहमद का मानना है कि ग्लोबल मंदी की वजह से विकसित देश अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए बाहरी आयात को कम करेंगे। इससे भारत के लिए आने वाले महीनों में निर्यात बढ़ाना और मुश्किल होगा। अगले छह महीने तक निर्यात में दिक्कतें आएंगी। विदेशी मुद्रा कर्ज पर राहत अवधि बढ़ी हालात को देखते हुए रिजर्व बैंक ने निर्यात के लिए विदेशी मुद्रा में लिए जाने वाले कर्ज पर देय ब्याज की उच्चतम सीमा संबंधी नियमों में राहत की अवधि भी बढ़ा दी है। मौजूदा नियम के मुताबिक बैंक विदेशी मुद्रा में निर्यात हेतु कर्ज की राशि पर लंदन आधारित इंटरबैंक दर (लाइबॉर) के मुकाबले 3.50 फीसदी ज्यादा तक ब्याज ले सकते हैं। निर्यातकों के लिए बेहद आसान इस सुविधा की अवधि 31 मार्च, 2012 तक थी। इसे बढ़ाकर 30 सितंबर, 2012 तक कर दिया गया है। dainik jagran 3/4/12