सरकार! रुपये तो लौटा दो
इलाहाबाद नाम-राकेश सिंह। वर्ग-जनरल पेशा-बेरोजगार। सुनीता राय। वर्ग-जनरल। पेशा-बेराजगार। अभिषेक यादव। वर्ग-ओबीसी। पेशा-बेरोजगार। धर्मेद्र कुमार सिंह। वर्ग-एससी। पेशा-बेराजगार। प्रदेश में ऐसे एक दो हजार नहीं, दो लाख 70 हजार से भी अधिक बेरोजगार हैं, जिनके आवेदन शुल्क के पैसे सरकार के पास फंसे हैं। कब वापस मिलेंगे कुछ पता नहीं। शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में नौकरी का सपना दिखाकर बेरोजगारों को कदम-कदम पर ठगा गया। सूबे की तत्कालीन सरकार भी पीछे नहीं रही। अभ्यर्थियों को पांच जिलों से आवेदन की छूट देकर खजाने में करोड़ों रुपये तो भर लिए, पर जब रकम वापस करने की बारी आई, तो वह चुप्पी साधकर बैठ गई। नई सरकार में भी बेरोजगारों को रुपये मिलने की पहल होती नहीं दिख रही। बेसिक शिक्षा विभाग ने प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में 30 नवंबर, 2011 को सहायक अध्यापकों के 72,825 पदों पर आवेदन मांगे थे। पहले हर आवेदक को पांच जिलों में आवेदन की छूट दी गई थी। सामान्य व पिछड़ी जाति के लिए एक जिले में आवेदन का शुल्क 500 रुपये। अनुसूचित जाति/ जनजाति अभ्यर्थी का शुल्क 200 रुपये व विकलांग अभ्यर्थी निशुल्क रखा गया था। प्राथमिक स्तर की टीईटी परीक्षा में 2 लाख 70 हजार से अधिक आवेदन हुए थे। 12 दिसंबर,2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में पांच जनपदों में आवेदन करने संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया। अभ्यर्थियों को मनचाहे जिलों से आवेदन की छूट दी गई। कहा गया कि जिन अभ्यर्थियों ने एक से अधिक जिलों में आवेदन करते समय एक से अधिक बैंक ड्रॉफ्ट जमा किए हैं, उनके एक बैंक ड्रॉफ्ट को रोकते हुए शेष राशि वापस की जाएगी। इसके लिए सरकार अलग से आदेश जारी करेगी। टीईटी निरस्त होगी या रहेगी, यह अलग मुद्दा है, पर इस आदेश को सात महीने बीत गए और बेरोजगारों का पैसा वापस नहीं किया गया। source-dainik jagran news paper 8/5/12